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रविवार, 20 जनवरी 2019

कहानियां

अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरतीं हैं
छुती हैं मुझको
और
झिझोड़ती है।

जिस्म बेचती औरते
मेरे जेहन मे
अजीब लाईनें उकेरती है
अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरती है।

कोयले के कालिख से पुते-
काले-काले हाथ
नेताओं के कुरते पर
सफेदी उडेलती हैं
अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरती हैं।

ऊंची-2 इमारतें
खाती है झोपडो कि खुराक
सीवरों कि मोटी पाईपे
कस्बों कि गलियों से गुजरती हैं
अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरती हैं।

उडता है बचपन
सुबहो-शाम
मजदूर के चुल्हे से
जवानी कारखानों कि भट्टीयो मे पकती हैं
अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरती हैं

मेरी कहानी का
किरदार
सो गया है थक के
अपने ही रिक्शे पर
उधार कि किश्ते
उसके नसो पे उभरती हैं
अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरती हैं।

मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

खाली वक्त

  1.                  खाली वक्त जो आज शायद ही किसी के पास हो।पन्ने भरे पडे है शेड्यूलो से। दिमाग मे काम कि लिस्ट बनती बिगड़ती रहती है।समय को पैसे कि तरह खर्च करना सिखते है हम।बचपन से हमें समझाया जाता है कि टाइम इज मनी।और मै दिन भर समय के हिसाब को ठीक करने मे लगा रहता हुं पर मेरे बागीचे मे धूप मे सोया कुत्ता ये बात नहीं समझता।आराम से अंगडाइया लेता है बहुत ज्यादा शोर पर भी थोड़ा सा आंख खोल बिना कोई मौखिक प्रतिक्रिया दिये फिर टांग पसार लेता है उसकी सुखभरी गहरी नींद को देख समझ नही आता उससे जलू या उसे किसी तरह समझा दू कि टाइम ईज मनी। पर ये भी हो सकता है कि वो अपना क्वालिटी टाइम गुजार रहा हो। जैसे रात मे सोते समय हम हिसाब लगाते है कि दिनभर अपनी खुशी के लिए या ऐसी चीजें, जो आगे चलकर हमें खुशी दे सकती हैं। के लिए कितना समय दिया और कितना व्यर्थ कर दिया या न चाहते हुये दुसरे पर खर्च करना पड़ा। इन्सान टाइम मैनेज भी कर लेता हैं।शायद ही किसी अन्य जीव को अपने समय के महत्व कि इतनी समझ हो। हमने तो किस समय कितना हंसना हैं और कब सिर्फ मुस्कुराना है तक ईजाद कर लिया है। पर अभी भी कुछ खाली वक्त हमारी झोली मे ऐसे गिरते है जैसे सड़क पर गिरा एक का सिक्का जो कि हमारे तेज कदमों और और दौडते विचारों को यकायक रोक हमें पैसा पाने कि वहीं खुशी देता हैं जो बचपन से आज तक नही बदली। रात किसी मेजबान के घर सोने पर जगह बदलने के कारण जब नींद नही आती।और आप न मोबाइल चला सकते हैं न लाईट जला सकते है।इस वक्त आप मजबूर होते है कुछ न करने के लिए।और होता है आपके पास ढे़र सारा खाली वक्त। दवाखाने मे डाक्टर से मिलने के इंतजार मे बैठे खुद के दर्द से परेशान जब दुसरे मरीजों के चेहरे पढते है।तब होता है हमारे पास ढ़ेर सारा खाली वक्त। छूट जाये जब आखिरी बस या ट्रेन कभी तब भी वक्त हमारे सामने खडा होता है हमसे गले मिलकर आगे बढ़ने को।दिनभर मे कई बार हमें इस तरह के खाली वक्त कैशबैक कूपन्स कि तरह मिलते रहते है।और यही छोटे-2 समय के कतरे हमसे हमारी पहचान कराते है। ये पल हमारे दौड़ते कदमों को रोकते है और करते है हमें मजबूर ये समझने के लिए कि हम इन्सान है मशीन नही जिस जमीन पर हम दौड़ रहे है हम खुद उसका ही हिस्सा है।

गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

मेरा कमरा

एक कलाकार के कमरे से
गायब हुये सामानों
कि सुची-
एकांत,
अवसाद,
दिन के उजाले मे
रात सा अन्धकार,
आधी फुकी सिगरेटों से भरा
एश-र्टे,
दिवारों पर लिखी
अधुरी कविताएं,
और
और.....
ऐसा बहुत कुछ
जो रगींन कल्पनाओ मे
घुला चारदिवारों से
टकराता
हिलोरे लेता
तैरता रहता था।


बुधवार, 5 दिसंबर 2018

निष्पक्ष

आज लिखना है मुझकों
कुछ निष्पक्ष
बेहद पाक
बच्चे कि मुस्कान जैसा
खेत मे लहलहाते धान जैसा
शान्त शमशान जैसा
माँ के आँचल छाँव जैसा

बेहद निष्पक्ष
पर
जब उठती है कलम
लिखती है स्याही मे
घोल के
विचारों मे
मेरा पक्ष
शब्द के तीर
चलते है
मेरे भावनाओं के
कमान से

शायद
हम जिन चीजों को
बाँध नहीं सकते शब्दों मे
उनका पक्ष
हमे निष्पक्ष
लिख दे।
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रविवार, 2 दिसंबर 2018

रँग


खेलता था बचपन में,
भर देता था दीवार,
मोम के रंगों से।

शौक से लुटता था,
रंग-बिरंगी पतगें,
लाल,हरी-
चटख पीली।

घर के पूजा मे,
दौड़ता था दिन भर,
पैरों मे रचा महावर।

होली के रंगों मे आज भी,
भीगा है मेरा पहला प्रेम।

आज मैं चित्रकार हूं,
पसन्द है मुझे
रंगों में उगंलियाँ डूबोना
सुंघना हर रंग को,
महसूसना उसके ताजेपन को।

और पसंद है मुझे
रात भर लिपटकर सोना
रंगों के साथ।

देखना
सूखते रंगों का रंग बदलना।
करना
नये रंगों का सृजन।

पर, अब डरता हूं
सकरा होके संम्भलता हूं
कुचल ना जाये कहीं मेरे रंग
किसी बुद्धिजीवी के तर्क से।

रंग तो बिना अर्थ के भी देते है खुशी
फिर क्यूँ हर रंग मे ढूंढता है कोई अर्थ।

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मंगलवार, 27 नवंबर 2018

मुखौटे

कितना चिकना हो गया हूँमैं
कमब्खत,आइना हो गया हूँ मैं
हर शख्स है खुश
मुझमें अपने जैसा देखकर,

मै भी हूँ खुश
मुखौटों कि आड़ से
अपने जैसा चेहरा देखकर

मुखौटे
मुस्कुराने वाले,
मुखौटे
रोने वाले,
फेसबुक पर
बहुत खुश होंने वाले,

अमीरी वाले,
गरीबी वाले,
और गरीबों के खातिर,
ढे़र सारे रौबीले मुखौटे,

बड़ी-बड़ी पार्टियो के खातिर
सख्त अभिमानी मुखौटे,
लम्बी नाक वाले
सिद्धान्तवादी मुखौटे,
राजनीतिक सभाओ के खातिर
जातिवादी मुखौटे,

चुपके से पहनता हूं
बातचीत के बीच
अवसरवादी मुखौटे,

भिंच गये हैं मेरे जबडे
मुखौटे के खाचों से
जुबान हिलती है
मगर
बोलती नही।
आँखे छलकती है
मगर
सोख लेते है आँसू
मुखौटे।

सोमवार, 26 नवंबर 2018

कैन्टीन का कप

चट्टाख्ख
बिखरा है
कोने में
मेज के नीचे
एक कप
आँखिरी साँस
गिनता हुआ

गर्म भट्ठ़ो से निकलकर
खुबसुरत डिब्बों कि सवारी पर
जब आया था
पहली बार कैन्टीन मे
किसी खुबसूरत दुल्हे कि तरह
चमकदार

कई खुबसूरत हसीन हाथों को
चुमा था इसने और
चुमा था इसको
कई हसीन होठों ने

इसने देखें कई
प्रणय
और विरह
कभी
गहरी खामोशी
दो जोडी आँखों कि

याद है इसे वो दिन
जब प्रेमिका ने खुश होकर
लगाया था इसे सीने से
और दर्द मे
इसने ही सम्भाला था
उसके आँसुओं कि बूदों को
बुदों मे भीगा
इसका रोम-रोम
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रोम-रोम मे
धुआं ही धुआं
और बगल मे गर्म फेफड़े सी
ऐश-ट्रे और
ऐश-ट्रे मे
ख्वाहिशो
उम्मीदों
के अधजले टुकड़े
और सामने जिम्मेदारीयो से बोझिल
युवा मन

परत दर परत
खो रहा था अपनी चमक
ये कप
वक्त ने दिये इसे
कई निशान
टुटन
चिरकन
कप ने तय किया लम्बा सफर
आगे के टेबल से
पीछे के टेबल तक

और चला आया
उन काँपते हाथों मे
जिन्होंने अब तक सम्भाला था
टुटे फ्रेम का चश्मा
इसने चोर निगाहों से देखा था
पल्लू मे बंधा दस का नोट और
एक खुराक खांसी की

जानी थी इसने
मजबूरी भूख कि
और प्यास
लार मे चटचटाती
जीभ कि

काँपते हाथ
कब तक देते साथ
खत्म हो चुकी थी
कप कि भी बात

कोई बहाना न देख
गलती से छडी कप से टकराईं
सांसो ने छोडा साथ
और आवाज आयी
चट्टाख्ख

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कहानियां

अक्सर मेरे करीब से कहानियां गुजरतीं हैं छुती हैं मुझको और झिझोड़ती है। जिस्म बेचती औरते मेरे जेहन मे अजीब लाईनें उकेरती है अक्सर मेरे ...